Monday, August 27, 2007

Don’t leave me

A feather
torn from the wings,
mid air.
The airborne wanderer
at the mercy of winds.
forsaken by sky,
unwanted on land.
A flight of fancy
and its sad end

Sometimes
I think the unthinkable
And my frightened hands
grope in dark
seeking your hand.

Don’t leave me
even in my worst nightmare

Thursday, August 2, 2007

और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग

मैंने समझा था कि तू है तो दरख्शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगडा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रख़्ख़ा क्या है
[दरख्शाँ:shining हयात:Life]
[ग़म-ए-दहर : sorrows of the world]
[ आलम: world सबात: permanence]

तू जो मिल जाए तो तकदीर निगूँ हो जाए
यूँ न था मैंने फक़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
[निगुँ : Change फक़त: only वस्ल: union/meeting]

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग

अनगिनत सदियों के तारीक़ बाहिमाना तिलिस्म
रेशम-ओ-अतलास-ओ-कमख्वाब में बुनवाए हुए
जा-बा-जा बिकते हुए कुचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथडे हुए ख़ून में नहलाए हुए
[तारीक़ बाहिमाना तिलिस्म: dark dreadful magics]
[रेशम:silk; अतलास:satin; कमख्वाब:brocade]

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तानूरों से
पीप बहते हुई ग़लते हुए नासूरों से
[आमराज़ : diseases, तानूर: ovens]
[पीप:pus, नासूर: ulcer]

लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीज़े
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीज़े
[दिलकश: heart-winning]


और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग

Faiz Ahmad Faiz