Saturday, May 19, 2007

कभी कभी

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कि ज़िंदगी तेरी ज़ुल्फ़ॉ की नर्म छाओं में
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी
[शादाब: happy, तीरगी: darkness, जीस्त: darkness शुआओं:rays]

अजब ना था के मैं बेगाना-ए-आलम हो कर
तेरे जमाल की रानाइयों में खो रहता
तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीम-बार आँखें
इन्हीं हसीन फसानों में माहो रहता
[बेगाना-ए-आलम: ignorant of world, जमाल: beauty रानाइयों:elegance, माहो रहता: preoccupied]

पुकारती मुझे जब तलखियाँ ज़माने की
तेरे लबों से हलावाट के घूँट पी लेता
हयात चीखती फिरती बरहना-सर और मैं
घनेरी ज़ुल्फ़ॉ के साए में छुप के जी लेता
[तलखियाँ: bitterness हलावाट: deliciousness, हयात: existence बरहना-सर: uncovered head]

मगर ये हो ना सका और अब ये आलम है
के तू नहीं, तेरा ग़म, तेरी जुस्तजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं
[जुस्तजू: quest]

ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी गुज़रगाहों से
मुहीब साए मेरी सिम्त बढ़ते आते है
हयात-ओ-मौत के पुरहौल खारज़ारों से
[मुहीब : dreadful, पुरहौल : terrible, खारज़ारों : thorny wastelands]

ना कोई जादाह ना मंज़िल ना रोशनी का सुराग
भटक रही है खलाओं में ज़िंदगी मेरी
इन्हीं खलाओं में रह जाउँगा कभी खोकर
मैं जानता हूँ मेरी हमनफ़स मगर यूँ ही
[जादाह: narrow opening, खलाओं: emptiness हमनफ़स friend]

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

Sahir Ludhiyaanvi

1 comment:

cheems said...

one of ure birthday gifts... will spend half an hour on the verse with u... till u perfect the sound of "z", and untill u are able to more than just read it out... for a person who feels every word, he should sound the same when even when he's seemingly reading it out.

we have a date KP.
..........meeeeeeeeeeee